झारखंड के एक छोटे से गांव दाहू में जन्मी और पली-बढ़ी सीमा कुमारी ने 2021 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कैंपस में कदम रखा. इस गांव में ज्यादातर परिवार खेती पर निर्भर हैं. सीमा ऐसी दुनिया में पली-बढ़ीं जहां लड़कियों की शिक्षा को शायद ही कभी प्राथमिकता दी जाती थी. उनके माता-पिता कभी स्कूल नहीं गए थे. उनके पिता धागा फैक्ट्री में मजदूर के तौर पर काम करते थे और उनके छोटे से घर में परिवार के 19 सदस्य एक साथ रहते थे. ऐसी जगह जहां कई लड़कियों की शादी छोटी उम्र में ही कर दी जाती है, सीमा का हॉर्वर्ड पहुंचना किसी उपलब्धि से कम नहीं है.

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फुटबॉल ने कम उम्र में शादी की भेंट चढ़ने से बचाया

साल 2012 में जब सीमा नौ साल की थी, तब युवा नाम का एक एनजीओ उसके गांव में आया. इसने लड़कियों को जोड़ने और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए फुटबॉल का इस्तेमाल किया. सीमा भी जल्दी से इसमें शामिल हो गई और अपने घर और स्कूल के कामों के बीच प्रैक्टिस करने लगीं. लेकिन वह सिर्फ खेल तक ही सीमित नहीं रहीं. सीमा के लिए फुटबॉल शादी से बचने का एक कारण बन गया और इसने उन्हें खुद को खोजने और उनकी दुनिया से बाहर निकलने का मौका दिया. धीरे-धीरे इस एनजीओ ने गांव में स्कूल भी खोला जहां सीमा ने पढ़ाई शुरू की.

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कैसे खुले हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के रास्ते?

सीमा ने अंग्रेजी सीखना शुरू किया और फुटबॉल ने उन्हें नेशनल टूर्नामेंट और इंटरनेशनल ट्रेनिंग कैंप्स में पहुंचाया. 20 साल की उम्र तक सीमा कैम्ब्रिज और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शॉर्ट टर्म कोर्सेस में शामिल हुईं. लेकिन हॉर्वर्ड तब भी उनकी पहुंच से दूर था. हॉवर्ड तब पिक्चर में आया जब मैगी नाम की इंग्लिश टीचर ने युवा के स्कूल को जॉइन किया जो हॉर्वर्ड से पढ़ चुकी थीं. उन्होंने ही सीमा की प्रतिभा को पहचाना और सीमा की एप्लीकेशन, फॉर्म और स्कॉलरशिप के एप्लीकेशन लिखने में उनकी मदद की पर SAT जैसे एग्जाम के लिए जरूरी फीस और यात्रा का खर्च अब भी सीमा के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा था. लेकिन कोविड महामारी के दौरान हॉर्वर्ड ने इस परीक्षा की जरूरत को हटा दिए और सीमा के लिए इस यूनिवर्सिटी के रास्ते खुल गए.

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स्कूल फीस भरने के लिए कोचिंग तक पढ़ाया

एक दिन जब उन्होंने अपना ईमेल चेक किया तो पाया कि हार्वर्ड ने उनका एप्लीकेशन स्वीकार कर लिया है और साथ ही उन्हें पूरी स्कॉलरशिप भी मिल गई थी. फिलहाल सीमा साउथ एशियन एसोसिएशन, हार्वर्ड धर्मा, इंटरफेथ सोसाइटी, हार्वर्ड स्टूडेंट एजेंसीज और फूड लैब का हिस्सा हैं और अपने जैसी लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. फुलबॉल ने उन्हें ताकत दी. अपनी स्कूल फीस भरने के लिए उन्होंने कोचिंग पढ़ाया. ऐसे देश में जहां केवल 39% ग्रामीण लड़कियां हाईस्कूल तक पहुंचती हैं, सीमा की कहानी बेहतर भविष्य की पेशकश करती है.

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How did the daughter of a labourer reach Harvard niversity Villagers used to make fun of this footballer for wearing shorts know her success story
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मजदूर की बेटी कैसे पहुंची हार्वर्ड? कभी शॉर्ट्स पहनने पर इस फुटबॉलर का गांव
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मजदूर की बेटी कैसे पहुंची हार्वर्ड? कभी शॉर्ट्स पहनने पर इस फुटबॉलर का गांव वाले उड़ाते थे मजाक

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