इसरो में साइंटिस्ट के तौर पर प्रतिष्ठित जॉब पाना देश में काफी लोगों का सपना होगा. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी लड़की से मिलाने जा रहे हैं जिन्होंने अच्छी सैलरी वाली इस जॉब को भी छोड़ दिया. अब आपके मन में भी यह सवाल आएगा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया. दरअसल ऐसा करने के पीछे एक बड़ी वजह थी. यह लड़की इंजीनियरिंग में भी बढ़िया करियर बना सकती थी लेकिन इसने जमीनी स्तर पर काम करना ज्यादा उचित समझा.
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इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से आती हैं तृप्ति
हम बात कर रहे हैं आईपीएस तृप्ति भट्ट की जिन्होंने लोगों के साथ सीधे जुड़ने और जमीनी स्तर पर बदलाव की इच्छा होने की वजह से सिविल सेवा को चुना. साल 2013 में उन्होंने अपने पहले प्रयास में ही यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा बढ़िया नंबरों से पास की और देशभर में उन्हें 165वीं रैंक हासिल हुई. उत्तराखंड के अल्मोड़ा में जन्मी और तृप्ति भट्ट ऐसे माहौल में पली-बढ़ी जहां शिक्षा को महत्व दिया जाता था. उन्होंने पंतनगर यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और पढ़ाई-लिखाई में भी वह आगे रहीं.
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एनटीपीसी और इसरो में किया काम
बीटेक की पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्हें टाटा मोटर्स, एनटीपीसी और मारुति सुजुकी सहित कई बड़ी कंपनियों में जॉब का ऑफर मिला और इन्होंने इनमें से एनटीपीसी को चुना. यहां उनकी जॉब असिस्टेंट मैनेजर के पद पर हुई थी लेकिन जल्द ही उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें जिंदगी में कुछ और करना है. इसके बाद इसरो में साइंटिस्ट के तौर पर भी उनका चयन हुआ लेकिन उनके मन में कहीं न कहीं जमीनी स्तर पर काम करने की इच्छा थी.
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फुलटाइम जॉब के साथ की तैयारी
अपनी इस इच्छा के कारण उन्होंने जॉब में रहते हुए ही यूपीएससी की तैयारी का कम बनाया लेकिन फुलटाइम जॉब करते हुए इस परीक्षा की तैयारी करना आसान नहीं था. फिर भी वह अपने लक्ष्य के प्रति केंद्रित रहीं और अपनी मेहनत और लगन के दम पर इसमें सफल रहीं. बढ़िया रैंक की वजह से वह सिविल सेवा में किसी भी विकल्प को चुन सकती थीं लेकिन उन्होंने आईपीएस चुना. उन्हें अपना होम कैडर उत्तराखंड भी मिल गया. तृप्ति की कहानी सिविल सेवाओं में लैंगिक समानता के महत्व को भी उजागर करती है. उत्तराखंड जैसे राज्य मे जिसे अक्सर रूढ़िवादी माना जाता है तृप्ति ने रूढ़िवादिता को तोड़ा और साबित किया कि सिविल सेवाएं सिर्फ पुरुषों के लिए नहीं हैं.
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IPS Tripti Bhatt
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