'प्रेम की माला जपते आप बनी मैं श्याम, सांसों की माला पा समारों मैं पी का नाम'.....इस गाने को आपने एक बार तो जरूर सुना ही होगा. इसके तमाम वर्जन बन चुके हैं. गाने में श्याम यानी कान्हा जी का जिक्र है जिससे ये और भी अद्भुत हो जाता है. इसे पाकिस्तानी गायक-गीतकार नुसरत फतेह अली खान (Nusrat Fateh Ali Khan) ने बनाया था. मुस्लिम और पाकिस्तानी होने के बाद भी इतनी शिद्दत से इस गाने को लिखा गया और गाया था. पर क्या आप जानते हैं कि नुसरत फतेह के पिता को कभी उनकी आवाज पसंद नहीं थी. जी हां, इस महाने सिंगर के पिता उनके हुनर को नहीं पहचान पाए थे.
कव्वाली को आज नुसरत फतेह अली खान के नाम से जाना जाता है. इनके गायन ने कव्वाली को पाकिस्तान से आगे बढ़कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है. 13 अक्टूबर 1948 को पंजाब के फैसलाबाद में जन्मे नुसरत फतेह अली खान कव्वालों के घराने से हैं. उनके पिता उस्ताद फतेह अली खान साहब भी एक बहुत मशहूर कव्वाल थे. एक समय ऐसा था जब उनके पिता को आवाज सही नहीं लगती थी. उनके पिता का कहना था 'अल्लाह ने उन्हें आवाज ही नहीं दी तो मैं इसे इल्म कैसे दूं.'
नुसरत फतेह अली खान के पिता ने उन्हें कव्वाली के क्षेत्र में आने से रोका था और खानदान की 600 सालों से चली आ रही परम्परा को तोड़ना चाहा था. हालांकि वक्त को कुछ और ही मंजूर था. फिर क्या था पिता को मानना पड़ा और नुसरत की आवाज का इतिहास हमारे सामने है. फिर नुसरत साहब ने 125 एल्बम निकाले थे. इनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है.
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16 अगस्त 1997 को नुसरत जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. नुसरत साहब भले ही हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी आवाज का जादू, उनका अंदाज, उनका वो गाते समय हाथों को हिलाना, चेहरे पर संजीदगी ये सबकुछ लोगों को भाता है. नुसरत साहब भले ही पाकिस्तान से थे पर उनके चाहने वाले भारत में भी हैं. दोनों मुल्कों के बीच खिंची लकीरें भी उनकी आवाज के जादू को नहीं रोक पाई.
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उनके कुछ मशहूर गाने:
- दमादम मस्त कलन्दर
- छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिला के
- हुस्नेजाना की तारीप मुमकिन नहीं
- आपसे मिलकर हम कुछ बदल से गए
- तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी
- आंख उट्ठी मोहब्बत ने अंगड़ाई ली
- काली काली जुल्फों के फन्दे ना डालो
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Ustad Nusrat Fateh Ali Khan
पाकिस्तान के होकर वो कव्वाली में श्याम का नाम जपते, आज दोनों मुल्कों में है बड़ा नाम