हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के घुमारवीं कस्बे में फरवरी माह में एक अजीब घटना घटी. यहां एक 33 वर्षीय व्यक्ति की जब सर्जरी हुई तो उसके पेट से 33 सिक्के निकले, जिसे देखकर ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर भी हैरान रह गए. सर्जरी के जरिए डॉक्टरों ने युवक के पेट से 300 रुपये मूल्य के 33 सिक्के निकाले. इन सिक्कों का कुल वजन 247 ग्राम था. इलाज के दौरान डॉक्टरों को पता चला कि युवक सिजोफ्रेनिया से पीड़ित था.
यह सिज़ोफ्रेनिया क्या है? कोई व्यक्ति चाकू, सिक्के, पेन, पेंसिल और यहां तक कि चम्मच भी क्यों निगल जाता है? यह वास्तव में एक मानसिक बीमारी है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार, सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है जो व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को प्रभावित करती है. सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोग वास्तविकता से अलग हो जाते हैं. पीड़ितों को अपने दैनिक कार्यों में भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा व्यक्ति समाज और परिवार से भी कट जाता है. इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को अजीब महसूस होता है.
सिज़ोफ्रेनिया विकार के कारण
यह बीमारी किस तरह से लोगों के जीवन को प्रभावित करती है, चलिए जानें. अगर हम मानसिक बीमारियों की बात करें तो सिज़ोफ्रेनिया हमारे समाज में सबसे अधिक गलत समझी जाने वाली स्थितियों में से एक है." हमारी आम समझ यह है कि मानसिक बीमारी 'पागलपन' है, लेकिन सच्चाई इससे बहुत अलग, संवेदनशील और चिंताजनक है. सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति वास्तविकता से संपर्क खोने लगता है.
वह जो कुछ भी देखता, सुनता या अनुभव करता है, वह वास्तविक नहीं है, वह केवल एक भ्रम है, लेकिन एक सिज़ोफ्रेनिक रोगी के लिए, ये सभी अनुभव पूरी तरह से वास्तविक हैं. यह बीमारी न केवल दिल और दिमाग को प्रभावित करती है, बल्कि जीवन, रिश्तों, काम, पढ़ाई, यहां तक कि व्यक्ति के सोचने के तरीके और आत्म-पहचान को भी प्रभावित करती है.
सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार, सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों को पहचानना और जल्द से जल्द उपचार लेना महत्वपूर्ण है. सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों का आमतौर पर 16 से 30 वर्ष की आयु के बीच निदान किया जाता है, जो मनोविकृति का पहला चरण है. रोगी का उपचार जितनी जल्दी शुरू हो जाए, उतना अच्छा है. हालांकि, शोध से पता चला है कि सोच, व्यवहार, मनोदशा और सामाजिक कार्यप्रणाली में परिवर्तन अक्सर मनोविकृति के प्रथम चरण से पहले ही आ जाते हैं.
ऐसा किस उम्र में होता है?
यह बीमारी आमतौर पर 20 से 30 साल की उम्र के बीच शुरू होती है.' पुरुषों में यह रोग जल्दी शुरू हो सकता है, लेकिन महिलाओं में लक्षण थोड़ी देर से दिखाई देते हैं. कभी-कभी इसके लक्षण किशोरों में भी देखे जाते हैं, लेकिन लोग अक्सर इसे 'विद्रोही स्वभाव' या 'गुस्सा करने की आदत' समझकर नजरअंदाज कर देते हैं.
सिज़ोफ्रेनिया के कारण?
सिज़ोफ्रेनिया के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि आनुवंशिकता भी इसका एक कारण हो सकती है. यदि परिवार में किसी को मानसिक बीमारी है, तो इस बीमारी के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा मस्तिष्क में रसायनों का असंतुलन भी इसका कारण हो सकता है. इसका मुख्य कारण विशेष रूप से डोपामाइन और सेरोटोनिन में गड़बड़ी है. यह रोग लंबे समय तक तनाव और नशे (जैसे मारिजुआना, शराब, ड्रग्स) के कारण भी हो सकता है.
इलाज संभव है, लेकिन समय रहते: सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सिज़ोफ्रेनिया का इलाज संभव है, लेकिन समय रहते इसकी पहचान करना ज़रूरी है. दवा, परामर्श और पारिवारिक सहयोग की मदद से मरीज सामान्य जीवन जी सकते हैं.
मानसिक स्वास्थ्य के लिए समाज में बदलाव की जरूरत: शारीरिक बीमारियों के लिए हम डॉक्टर के पास भागते हैं. हालाँकि, जब बात मस्तिष्क की आती है तो हम चुप रहते हैं.' समाज को यह समझना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है. सिज़ोफ्रेनिया एक ऐसी बीमारी है जो बाहर से दिखाई नहीं देती. लेकिन यह व्यक्ति को अंदर से पूरी तरह बदल देता है. यदि समय पर उपचार उपलब्ध न हो तो रोगी न केवल अलग-थलग पड़ जाता है, बल्कि ऐसा रोगी कभी-कभी स्वयं के लिए भी खतरा बन जाता है. समझदारी और समय पर हस्तक्षेप से इस लड़ाई को जीता जा सकता है.
मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक समर्थन जरूरी है
सिजोफ्रेनिया के उपचार में दवा के साथ-साथ दूसरी अन्य थेरेपी भी बहुत महत्वपूर्ण है. लक्षणों को केवल दवा से नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन व्यक्ति को सामान्य जीवन जीने के लिए मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक समर्थन की आवश्यकता होती है, और यह सब चिकित्सा के माध्यम से प्रदान किया जाता है. हम रोगियों को मनोचिकित्सा, संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी और पारिवारिक थेरेपी सहित विभिन्न प्रकार की उपचार पद्धतियां प्रदान करते हैं. रोगी को जो भी थेरेपी दी जाती है, उससे न केवल उसे दवाओं पर निर्भरता कम करने में मदद मिलती है, बल्कि उसे अपनी पहचान, आत्मविश्वास और जीवन में दिशा हासिल करने में भी मदद मिलती है.
मनोचिकित्सा: इसमें रोगी के विचारों, व्यवहार और भावनाओं को समझने के लिए उससे बात की जाती है. इसका उद्देश्य धीरे-धीरे रोगी की सोच को वास्तविकता के करीब लाना है. यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है, लेकिन इसके परिणाम बहुत सकारात्मक हैं.
संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी: इस थेरेपी में रोगी को सिखाया जाता है कि वह अपने भ्रमों का सामना कैसे करे. नकारात्मक विचारों को कैसे पहचानें और उन्हें सकारात्मक विचारों में कैसे बदलें. अक्सर रोगी को यह अहसास हो जाता है कि उसके अनुभव वास्तविक नहीं हैं और फिर वह धीरे-धीरे इससे बाहर आ सकता है.
पारिवारिक उपचार: सिज़ोफ्रेनिया का उपचार केवल रोगी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि परिवार को भी समझने और सहयोग करने की आवश्यकता है. पारिवारिक चिकित्सा में परिवार के सदस्यों को सिखाया जाता है कि मरीज के साथ कैसे व्यवहार करें, तनाव कैसे कम करें और कब डॉक्टर को दिखाएं. इससे रोग की पुनरावृत्ति का जोखिम कम हो जाता है.
पुनर्वास: रोगी के लक्षणों पर काबू पाने के बाद, उसे सामान्य जीवन में लौटने में मदद करने के लिए सामाजिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें.)
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