Akshaya Tritiya Vrat Katha: हिंदू धर्म में होली दिवाली के अलावा भी कई महत्वपूर्व तिथि और त्योहार आते हैं. इन्हीं में से एक अक्षय तृतिया है. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह व्रत मनाया जाता है. पौराणिक कथा की मानें तो अक्षय तृतिया को लेकर बहुत सारी कहानियां और कथाओं का वर्णन मिलता है. इस दिन को अबूझ मुहूर्त माना जाता है. यानी इस दिन का कोई भी समय शुभ होता है. इसमें कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं. इस दिन विवाह से लेकर अन्य कार्य करना शुभ होता है. इसलिए इस दिन को भगवान परशुराम की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है.
अक्षय तृतीया के दिन सुबह उठकर गंगा स्नान करें. इसके बाद विधिपूर्वक देवी देवताओं की पूजा अर्चना करें. इसके साथ ही मां लक्ष्मी की आरती और पूजा कर व्रत धारण करें. साथ ही इस दिन कुछ न कुछ दान जरूर करें. जैसे जल, घड़े, पंखे, चावल, नमक, जौ, सत्तू, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि चीजों का दान करें. आइए जानते हैं अक्षय तृतीया वृत की विधि और कथा...
अक्षय तृतीया की व्रत कथा
अक्षय तृतीया से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, धर्मदास नामक एक वैश्य था. धर्मदास की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. वह हमेशा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए चिंतित रहता था, आर्थिक स्थिति ठीक न होते हुए भी वह स्वभाव से बहुत ही धार्मिक एवं दानी था. एक बार धर्मदास ने किसी कथा के दौरान अक्षय तृतीया के दिन किए जाने वाले दान का महत्व सुना. कथा का महात्म्य सुनने के बाद वह हर साल अक्षय तृतीया को सुबह गंगा नदी में स्नान कर सभी देवी देवताओं की विधिपूर्वक पूजा करने लगा. अपने सामर्थ्य अनुसार जल से भरे घड़े, जौ, अनाज, गुड़, घी, जैसी कई वस्तुओं को भगवान और ब्राह्मणों को अर्पित करता था.
यह सब देखकर धर्मदास की पत्नी उसे रोकने की कोशिश करती थी, क्योंकि उसे लगता था कि अगर इतना सब दान में दे देंगे तो परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा. अपनी पत्नी की बातों को सुनकर धर्मदास बिल्कुल भी विचलित नहीं होता और वह अपने सामर्थ्य अनुसार दान पुण्य करते रहता था. वृद्धावस्था में अनेक रोगों से ग्रस्त होने के बावजूद भी धर्मदास अक्षय तृतीया के दिन व्रत एवं दान पुण्य किया करता था. पौराणिक कथा के अनुसार, यही धर्मदास वैश्य अक्षय तृतीया के दान-धर्म के पुण्य के कारण अगले जन्म में कुशावती राजा बना.
धर्मदास अपने अगले जन्म में भी दान-पुण्य करने वाला धार्मिक स्वभाव का था. कहा जाता है कि उनके महायज्ञ के आयोजन में त्रिदेव वेश बदलकर शामिल हुआ करते थे. प्रतापी राजा होने के बावजूद भी वह कभी दान धर्म के मार्ग से नहीं भटका और अपने पुण्य फल से अपने अगले जन्म में यही राजा भारत के महान सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुए थे.
अक्षय तृतीया पर दान-पुण्य से खुश होकर भगवान ने धर्मदास पर कृपा की वैसे ही जो कोई भी अक्षय तृतीया (अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त) के इस दिन दान पुण्य कर व्रत कथा सुनता एवं पढ़ता है उसे भी अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. धार्मिक शास्त्रों में भी यह कहा गया है कि जीवन में सुख, समृद्धि, यश और वैभव की प्राप्ति के लिए इस दिन दान-पुण्य करके व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए.
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अक्षय तृतीया को क्यों माना जाता है सबसे शुभ दिन, जानें इस दिन की पूजा विधि से लेकर व्रत की कथा