महाभारत काल में नियोग प्रथा के अनुसार अन्य पुरुषों से संतान उत्पन्न करना उचित माना गया था. लेकिन तब जब किसी स्त्री का पति संतान उत्पन्न करने की स्थिति में न हो या उसकी मृत्यु हो गई हो. महाभारत काल में कई रानियों ने दूसरे मर्दों के जरिए नियोग क्रिया से ही संतान को जन्म दिया था.
महाभारत में नियोग को धार्मिक, नैतिक और सामाजिक आवश्यकताओं के कारण स्वीकार किया गया था. यह पद्धति विशेष रूप से पारिवारिक परंपराओं को संरक्षित करने और वंश बढ़ाने के लिए अपनाई गई थी. यह केवल वंश को संरक्षित करने और पारिवारिक परंपराओं को बनाए रखने का एक साधन था. यह प्रथा केवल महिलाओं की सहमति से ही अपनाई जाती थी. इसमें बच्चे पर अधिकार केवल स्त्री के पति या कुल का माना गया, उस ऋषि या पुरुष का नहीं जिससे बच्चा पैदा हुआ है.
जब पांडवों की परदादी सत्यवती का विवाह ऋषि पराशर से हुआ था
महाभारत में रानी सत्यवती का नाम तो सभी जानते हैं. वह एक मछुआरे की बेटी थी. राजा शांतनु उसकी सुन्दरता से आकर्षित हुए. लेकिन जब वह सत्यवती से विवाह करना चाहता था, तो उसके पिता ने एक शर्त रखी कि केवल सत्यवती से उत्पन्न संतान ही सिंहासन पर बैठेगी. जिसके कारण शांतनु पुत्र भीष्म को जीवन पर्यन्त ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी. उसने शादी न करने की कसम खायी.
सत्यवती के दो पुत्र थे, चित्रांगद और विचित्रवीर्य. दोनों की मृत्यु के बाद हस्तिनापुर के सिंहासन के उत्तराधिकार को लेकर संकट उत्पन्न हो गया. तब सत्यवती ने अपने पुत्र वेद व्यास यानि ऋषि व्यास को बुलाया. राजा शांतनु से विवाह से पहले सत्यवती को ऋषि पराशर से एक पुत्र था. राजा शांतनु को यह पता नहीं था कि सत्यवती ने युवावस्था में ऋषि पराशर से एक पुत्र को जन्म दिया था. ऋषि पराशर सत्यवती पर मोहित हो गये. उन्होंने उसके साथ बच्चे पैदा करने की इच्छा व्यक्त की. फिर नियोग से सत्यवती ने क बेटा किया था. जिनका नाम वेद व्यास था. बाद में वे महाभारत के रचयिता बने थे.
सत्यवती ने वेद व्यास को बुलाया था नियोग क्रिया के लिए
कुरु वंश को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से सत्यवती ने अपने पुत्र महर्षि वेद व्यास को महल में बुलाया था. महर्षि व्यास ने सत्यवती की पुत्रवधुओं अम्बिका और अम्बालिका को संतान उत्पन्न किया. जब व्यास जी अम्बिका के पास आये तो उसने अपनी आंखें बंद कर लीं और धृतराष्ट्र को जन्म दिया जो जन्म से अंधे थे. जब व्यास अम्बालिका के पास पहुंचे तो वह भय से पीली पड़ गई, जिसके कारण पाण्डु का जन्म हुआ, जो शारीरिक रूप से दुर्बल थे. उनकी एक दासी का भी व्यास के साथ संबंध था जिनसे विदुर का जन्म हुआ, जो बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी थे.
पाण्डवों का जन्म भी संयोगवश हुआ था
ऋषि किंदम द्वारा पाण्डु को दिए गए श्राप के कारण, वह अपनी पत्नियों के साथ यौन संबंध नहीं बना सकते थे. इसके बाद उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों, कुंती और माद्री को संतान प्राप्ति के लिए नियोग करने की अनुमति दे दी. माद्री का सम्बन्ध अश्विनी कुमार से था. उनके नकुल और सहदेव नाम के जुड़वां पुत्र थे. नकुल और सहदेव पांडवों में सबसे छोटे थे.
जब कुंती कुंवारी थी, तब उसे ऋषि दुर्वासा से वरदान प्राप्त हुआ था. तदनुसार, उन्होंने सूर्य का आह्वान किया और कर्ण को जन्म दिया. कुंवारी होने के कारण अपमान के भय से उसने बच्चे को एक टोकरी में रखा और नदी में छोड़ दिया. विवाह के बाद पाण्डु की अनुमति से कुंती ने तीन और देवताओं का आह्वान किया, जिनसे उन्हें तीन संतानें हुईं. धर्मराज से युधिष्ठिर, वायुदेव से भीम और इंद्रदेव से अर्जुन का जन्म हुआ.
नियोग पद्धति होता क्या है?
नियोग वो पद्धित है जिसमें शारीरिक संबंध के बिना ही बच्चे पैदा होता हैं. मंत्र और शक्तियों के जरिये स्त्री की कोख में भ्रूण डाल दिया जाता है.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है, जो लोक कथाओं और मान्यताओं पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टी नहीं करता है)
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