Who Was Poswuyi Swuro: नागालैंड के सबसे ज्यादा उम्र के जीवित स्वतंत्रता सेनानी पोस्वुयी स्वुरो का मंगलवार को निधन हो गया. नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज (Indian National Army) के सिपाही रहे स्वुरो 106 साल की उम्र के थे, जिन्हें नेताजी से जुड़ा आखिरी लिंक कहकर भी याद किया जाता था. उनके निधन की जानकारी नागालैंड के पर्यटन व उच्च शिक्षा मंत्री तेमजेन इम्मा अलॉन्ग ने सोशल मीडिया पर सभी को दी है. तेमजेन ने बताया कि स्वुरो का निधन मंगलवार को दोपहर 4.03 बजे फेक जिले के अपने गांव रुझाझो में हो गया है. साल 1919 में जन्मे स्वुरो दूसरे विश्व युद्ध (World War 2) के दौरान महज 25 साल की उम्र में उस समय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए थे, जब आजाद हिंद फौज और जापानी सेना उनके गांव पहुंची थी.

इस कारण कहा जाता था नेताजी का आखिरी लिंक
दूसरे विश्व युद्ध की आंच उत्तर-पूर्वी भारत तक पहुंचने के कारण स्कूल-कॉलेजों के बंद हो जाने से स्वुरो अपने गांव लौट आए थे. इसी दौरान INA और जापानी सेना 4 अप्रैल, 1944 को 'दिल्ली चलो' अभियान के दौरान रुझाझो गांव पहुंची थी. यहीं स्वुरो को वह मौका मिला, जिसके चलते वे नेताजी का 'आखिरी लिंक' कहलाने लगे. दरअसल 5 अप्रैल, 1944 को नेताजी ने इलाके के लोगों की एक मीटिंग बुलाई, जिसमें पोस्युवी स्वुरो को दोबाशी (एरिया एडमिनिस्ट्रेटर) और उनके बड़े भाई वीस्युवी स्वुरो को नेताजी का दुभाषिया नियुक्ति किया गया. इसके अलावा 8 अन्य गांव वालों को गांव बुरा (गांव का बड़ा) बनाया गया. पोस्युवुी नेताजी को इतना भाए कि उन्होंने उन्हें ही अपने साथ दुभाषिया के तौर पर स्थानीय गांवों में घूम-घूमकर लोगों से मिलने और अपनी बात समझाने के लिए साथ रख लिया. इससे वे ही उत्तर-पूर्वी भारत के लोगों के साथ नेताजी का 'आखिरी लिंक' बन गए. रुझाझो गांव में नेताजी और आजाद हिंद फौज करीब 9 दिन तक रही थी और इस पूरे समय पोस्युवी स्वुरो उनके साथ मौजूद रहे.

रुझाझो बना 'आजाद हिंद सरकार' के प्रशासन वाला पहला गांव
रुझाझो गांव में दोबाशी और गांव बुरा की तैनाती कर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का प्रशासन तय किया था. यह भारतीय धरती पर 'आजाद हिंद सरकार' की सत्ता वाला पहला गांव था, जिसके ए़डमिनिस्ट्रेटर पोस्युवी स्वुरो को बनाया गया. नेताजी ने ग्रामीणों से भारत को आजादी मिलते ही गांव का विकास कराने का वादा किया था. पोस्युवी इस दौरान नेताजी और स्थानीय ग्रामीणों के बीच का 'पुल' कहलाते थे, जो दोनों तरफ की बातें एक-दूसरे को समझाने का काम करते थे. इस दौरान वे केवल रुझाझो ही नहीं बल्कि नेताजी की घोषणाओं को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए एक गांव से दूसरे गांव और फिर तीसरे गांव पैदल ही बहुत दूर-दूर तक घूमते थे. 

जान हथेली पर रखकर INA को पहुंचाते थे राशन
पोस्युवी गांव वालों से आजाद हिंद फौज के जवानों के लिए राशन जमा करने का काम भी करते थे. यह सारा राशन एक जगह जमा किया जाता था और इसके बाद फौज के अलग-अलग कैंपों में और कई बार जापानी सेना के लिए भी पहुंचाया जाता था. यह डिस्ट्रीब्यूशन करने का जिम्मा पोस्युवी ने ही उठा रखा था, जो खुद भी कई कैंपों तक राशन लेकर जाते थे. यह सारा काम जान हथेली पर रखकर किया जाता था, क्योंकि अंग्रेजी सेना पूरे इलाके में मौजूद थी, जो राशन ले जाने वाले लोगों को देखते ही गोली मार देती थी.

स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर था इलाके में बेहद सम्मान
पोस्युवी को आजादी के बाद सरकार की तरफ से स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर सम्मान नहीं मिला, लेकिन नागालैंड में उनका बेहद सम्मान था. उन्होंने 1950 में अपने गांव में ग्रामीणों को शिक्षित करने का काम शुरू किया और पूरी जिंदगी सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे. साल 2021 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू  उनसे मिलने के लिए रुझाझो गांव पहुंचे थे. तब उनका योगदान पूरी दुनिया के सामने आया. रुझाझो गांव में आजाद हिंद फौज और जापानी सेना के लिए नागा समुदाय द्वारा दी गई सेवाओं के सम्मान में एक पट्टिका भी लगाई गई है. अपनी आखिरी सांस तक पोस्युवी उस कुटिया को भी संरक्षण करते रहे, जिसमें रुझाझो गांव में 9 दिन के प्रवास के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस रहे थे और आजाद हिंद फौज का संचालन किया था.

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कौन थे पोस्वुयी स्वुरो, कहलाते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े आखिरी लिंक, आज
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Poswuyi Swuro अपने गांव में उस कुटिया के बाहर, जहां दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस कुछ दिन रहे थे. (फाइल फोटो)
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Poswuyi Swuro अपने गांव में उस कुटिया के बाहर, जहां दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस कुछ दिन रहे थे. (फाइल फोटो)

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कौन थे पोस्वुयी स्वुरो, कहलाते थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े आखिरी लिंक, आज हुआ निधन

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