17 अप्रैल को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्मदिन मनाया जाता है. साल 1927 में आज ही के दिन उत्तर प्रदेश में बलिया जिले के इब्राहिम पट्टी गांव में हुआ था. अपनी पढ़ाई के दिनों से ही राजनीति में सक्रिय रहे चंद्रशेखर सियासत के युवा तुर्कों में गिने जाते थे. विद्रोही स्वभाव और क्रांतिकारी विचारधारा उनकी पहचान थी. समाजवादी आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शामिल चंद्रशेखर बलिया से आठ बार सांसद रहे. उनके सियासी सफर की सबसे खास बात यह थी कि वे केंद्र या किसी राज्य सरकार में कभी मंत्री नहीं रहे, लेकिन सीधे प्रधानमंत्री बन गए. उनके प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने की कहानी भी बेहद रोचक है.


1989 में लोकसभा चुनाव के बाद किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. बोफोर्स घोटाले की आंधी में कांग्रेस पार्टी सत्ता से काफी दूर रह गई थी. हालांकि, सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस को ही मिली थीं. कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए भारतीय राजनीति में एक अनोखी शुरुआत हुई जब दक्षिणपंथी और वामपंथी एक साथ आ गया.भाजपा और लेफ्ट पार्टियों के सहयोग से जनता दल के विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बन गए. सत्ता में साझीदार बनते ही भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे को जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया. इधर, जनमोर्चा में शामिल अन्य पार्टियां धर्मनिरपेक्षता की पक्षधर थीं. 

राम मंदिर आंदोलन को हवा देने के लिए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा शुरू की तो गठबंधन में विरोध के स्वर उठने लगे. केंद्र सरकार रथयात्रा को रोकना तो चाहती थी, लेकिन डर इस बात का था कि कहीं इसके बाद पूरे देश में हिंदुत्व की हवा न चल पड़े. सरकार इसी उधेड़बुन में उलझी थी और आडवाणी का रथ बिहार पहुंच गया. उस समय मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी को अरेस्ट करा दिया.

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आडवाणी की गिरफ्तारी होते ही नाराज भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद चंद्रशेखर भी जनता दल से अलग हो गए और उसी पार्टी के 64 सांसदों के साथ मिलकर समाजवादी जनता पार्टी का गठन किया. सरकार बनाने के लिए नए गठबंधन की कोशिशें शुरू हुईं और कांग्रेस पार्टी चंद्रशेखर को समर्थन देने को तैयार हो गई. चंद्रशेखर ने अपनी राजनीति कांग्रेस से ही शुरू की थी, लेकिन आपातकाल के बाद कांग्रेस विरोध ही उनकी पहचान बन गया था. प्रधानमंत्री बनने के लिए चंद्रशेखर उसी कांग्रेस का समर्थन लेने को राजी हो गए.

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चंद्रशेखर ने 10 नवंबर, 1990 को पीएम पद की शपथ ली, लेकिन कांग्रेस के साथ उनके रिश्ते बेमेल शादी जैसा था. चंद्रशेखर को अंदर से कांग्रेस पर भरोसा नहीं था. कांग्रेस भी चंद्रशेखर को कामयाब होने नहीं देना चाहती थी. वह बात-बात पर अपनी इच्छाएं सरकार पर थोपती थी. अंदरूनी तौर पर कांग्रेस अगले चुनाव की तैयारियों में लगी थी. चार महीने बीतते-बीतते हालत ऐसी हो गई कि कांग्रेस चंद्रशेखर की सरकार से समर्थन वापस लेने का बहाना ढूंढने लगी. मार्च, 1991 की शुरुआत में कांग्रेस ने आरोप लगाया कि चंद्रशेखर की सरकार राहुल गांधी की जासूसी करवा रही है. इसी मुद्दे पर कांग्रेस ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. सरकार बनने के करीब चार महीने बाद 6 मार्च, 1991 को चंद्रशेखर ने अपना इस्तीफा दे दिया. हालांकि, वे 21 जून तक कार्यवाहक पीएम के रूप में काम करते रहे जब पीवी नरसिम्हा राव नए प्रधानमंत्री बने. 

 

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former pm chandrashekhar birthday, know the story how he became Prime Minister of India with just 64 MPs
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न मंत्री, न सीएम, 64 सांसदों के साथ कैसे पीएम बन गए चंद्रशेखर
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Chandrashekhar Birthday: न मंत्री, न सीएम, सीधे बन गए पीएम, 64 सांसदों वाली पार्टी के नेता कैसे पहुंचे प्रधानमंत्री की कुर्सी तक

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चंद्रशेखर भारत के अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो बिना मंत्री या सीएम बने इस कुर्सी तक पहुंचे. हालांकि, वे ज्यादा दिनों तक इस पद पर रह नहीं पाए.
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न मंत्री, न सीएम, 64 सांसदों के साथ कैसे पीएम बन गए चंद्रशेखर