उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) आज अपना 50वां जन्मदिन मना रहे हैं. गोरक्ष मठ के मठाधीश योगी आदित्यनाथ ने संन्यास से लेकर सियासत का सफर तय किया है. योगी आदित्यनाथ की हर पारी बेहद सफल रही है. अपने सियासी सफर में योगी आदित्यनाथ अजेय रहे हैं. उन्होंने सांसद से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं का एक बड़ा धड़ा उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का राजनीतिक उत्तराधिकारी मान लिया है.
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किसी ने सोचा नहीं था कि योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने वाले हैं. दिनेश शर्मा से लेकर मनोज सिन्हा तक के नाम की अटकलें चल रही थीं. साल 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को अप्रत्याशित जीत मिली थी. योगी आदित्यनाथ बीजेपी के फायरब्रांड नेता जरूर थे लेकिन मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं. फिर अचानक से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने फैसला लिया और उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी.
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योगी ने यह भी मिथक तोड़ दिया कि जो मुख्यमंत्री नोएडा जाता है उसकी कुर्सी चली जाती है और कई बार नोएडा जाने के बावजूद वह उत्तर प्रदेश में लगातार पिछले पांच वर्ष से मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
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योगी के संन्यासी होने से पहले एक बेहद साधारण परिवार में जन्मे थे. 5 जून 1972 को पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में यमकेश्वर तहसील के पंचुर गांव के एक गढ़वाली क्षत्रिय परिवार में उनका जन्म हुआ. योगी के पिता का नाम आनन्द सिंह बिष्ट था. अपने माता-पिता के सात बच्चों में योगी शुरू से ही सबसे तेज तर्रार थे. बचपन में उनका नाम अजय सिंह बिष्ट था.
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ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते हुए योगी 1990 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए और 1992 में उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएससी किया. राम मंदिर आंदोलन के दौर में उनका रुझान आंदोलन की ओर हुआ और इसी बीच वह गुरु गोरखनाथ पर शोध करने के लिए वर्ष 1993 में गोरखपुर आए.
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गोरखपुर में उन्हें महंत और राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के अगुवा महंत अवैद्यनाथ का स्नेह मिला और 1994 में योगी पूर्ण रूप से संन्यासी हो गए. योगी को महंत अवैद्यनाथ ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और दीक्षा लेने के बाद अजय सिंह बिष्ट योगी आदित्यनाथ हो गए. 12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद योगी गोरक्षपीठ के महंत घोषित किए गए.
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वह तब भाजपा से टकराव के भी गुरेज नहीं रखते थे और उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी नामक स्वयंसेवकों के अपने एक संगठन की स्थापना भी की थी. योगी का राजनीतिक सफर उपब्धियों से भरा है. राजनीति में योगी गोरक्षपीठ की तीसरी पीढ़ी हैं. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ भी गोरखपुर से विधायक और सांसद रहे . इसके बाद महंत अवैद्यनाथ ने भी विधानसभा और लोकसभा दोनों में प्रतिनिधित्व किया.
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योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 1998 में महज 26 वर्ष की उम्र में पहली बार गोरखपुर से भाजपा के सांसद बने और लगातार पांच बार उनकी जीत का सिलसिला बना रहा
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मार्च 2017 में लखनऊ में भाजपा विधायक दल की बैठक में योगी को विधायक दल का नेता चुना गया. इसके बाद योगी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और विधान परिषद के सदस्य बने और 19 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने ऐसे फैसले लिए जिनसे वह हिंदुत्व के पोस्टर बॉय बन गए.
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अपने कार्यकाल की शुरुआत में, उन्होंने अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगा दिया और पुलिस ने गोहत्या पर नकेल कस दी. उनकी सरकार बाद में जबरन या धोखे से धर्मांतरण के खिलाफ पहले अध्यादेश और फिर विधेयक लेकर आई. बाद में भाजपा शासित अन्य राज्यों ने भी इसे अपने तरीके से अपनाया.
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योगी आदित्यनाथ अपराधियों के खिलाफ सख्त तेवर अपनाने के लिए जाने जाते हैं. उन्हें किसी भी अवैध संपत्ति या माफियाओं की संपत्ति को ढहाने से गुरेज नहीं. चुनावी कैंपेन में योगी का बुलडोजर छाया रहा है. बीजेपी शासित दूसरे राज्यों में भी योगी का बुलडोजर मॉडल अपनाया जा रहाहै. अब योगी आदित्यनाथ अपने इसी मॉडल के भरोसे आगे बढ़ रहे हैं.