Agra News: उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक नगरी और एकसमय मुगलों की राजधानी रहे आगरा में पुरातात्विक महत्व की इमारतों पर बुलडोजर गरज रहे हैं. ये बुलडोजर सरकारी नहीं हैं, बल्कि बिल्डरों के हैं, जो इन ऐतिहासिक विरासतों को गिराकर गगनचुंबी इमारतें खड़ा कर अरबों रुपये कमाने की जुगत भिड़ा रहे हैं. इसमें 17वीं सदी की ऐतिहासिक धरोहर मुबारक मंजिल पर एक बिल्डर ने बुलडोजर चलाकर उसका 70 फीसदी हिस्सा गिरा दिया है. औरंगजेब की हवेली के नाम से मशहूर इस बिल्डिंग को तोड़ने पर भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) एक्टिव हो गया है. अब ASI ने ऐसी ही कई ऐतिहासिक विरासतों को बचाने की कवायद शुरू कर दी है. इनमें शाही हम्माम, जोहरा बाग और लोदीकालीन मस्जिद जैसी कई बिल्डिंग हैं, जिन पर बिल्डरों की टेढ़ी नजरें टिकी हुई हैं.
औरंगजेब ने कराया था मुबारक मंजिल का निर्माण
मुबारक मंजिल का निर्माण 17वीं सदी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने कराया था. जानकारी के मुताबिक, इसका निर्माण सामूगढ़ की लड़ाई के बाद कराया गया था. इस हवेली को मुगलिया रिवरफ्रंट गार्डन के अहम हिस्से के तौर पर राजा जयसिंह के नक्शे में 35 नंबर पर दर्ज किया गया है. उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, औरंगजेब, शाहजहां, शुजा के बाद इस बिल्डिंग को ब्रिटिश शासन में पहले नमक दफ्तर और फिर कस्टम हाउस के तौर पर इस्तेमाल किया गया.
संरक्षित धरोहर घोषित करने की चल रही थी प्रक्रिया
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस हवेली का 70 फीसदी हिस्सा एक बिल्डर ने बुलडोजर चलाकर तोड़ दिया है. इसका मलबा भी वहां से दूसरी जगह ले जाकर ठिकाने लगा दिया गया है. यह कार्रवाई तब हुई है, जब राज्य पुरातत्व विभाग इसे संरक्षित धरोहर घोषित करने की कवायद में जुटा हुआ था. तीन महीने पहले इसकी अधिसूचना जारी करके आपत्तियां भी मांगी जा चुकी है. फाइनल अधिसूचना जारी होने से पहले बिल्डर ने उस पर बुलडोजर चला दिया.
शाही हम्माम भी है खतरे में
छीपीटोला में 16वीं सदी में बनाया गया शाही हम्माम भी बिल्डरों की निगाह मे चढ़ा हुआ है. इस शाही हमाम का निर्माण मुगल दरबार के प्रमुख दरबारी अलीवर्दी खान ने कराया था, जिसमें मुगल बादशाह से मिलने के लिए आने वाले दूसरे देशों के राजा-महाराजा और सुल्तान करते थे. बादशाह से मिलने से पहले वे इस हम्माम में नहाते थे. मुगल सल्तनत के खात्मे के बाद इस हम्माम पर कब्जे हो गए और यहां फल मंडी बन गई. कुछ कमरों में लोग रहने लगे. मौजूद रिकॉर्ड के मुताबिक, ब्रिटिश शासन में 153 साल पहले भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित इमारत घोषित किया था. हालांकि मौजूदा समय में ASI अपने पास ऐसा कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं होने की बात कहती है.
शाही हम्माम में रहने वालों से किराया वसूलती थी सरकार
इस बात के रिकॉर्ड मौजूद हैं कि शाही हम्माम में रहने वालों से सरकार किराया वसूलती थी. पिछले सप्ताह बिल्डर ने यहां भी कई कमरों पर बुलडोजर चला दिया, जिसके बाद स्थानीय लोगों ने हाई कोर्ट में गुहार लगाई थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस सलिल राय और जस्टिस समीत गोपाल की बेंच ने इन लोगों की याचिका पर सुनवाई करते हुए शाही हम्माम गिराने पर रोक लगा दी थी. इस सुनवाई में लोगों ने यहां रहने वालों से सरकार द्वारा किराया वसूलने के दस्तावेजी सबूत भी पेश किए थे.
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