दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला महाकुंभ चल रहा है. महाकुंभ में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है. कड़ाके की ठंड के बावजूद लाखों लोग आस्था की डुबकी लगा रहे हैं. इस संगम को तीन नदियों के जल का मिलन कहा जाता है. सामान्य दिनों में जब भारत की नदियां बहुत गंदी होती हैं, संगम में स्नान करने वालों के मन में यह सवाल उठता है कि लाखों लोगों के पाप धोने वाला यह पानी कितना शुद्ध है?
महाकुंभ 2025: दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला महाकुंभ चल रहा है. महाकुंभ में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है. कड़ाके की ठंड के बावजूद लाखों लोग आस्था की डुबकी लगा रहे हैं. इस संगम को तीन नदियों के जल का मिलन कहा जाता है. सामान्य दिनों में जब भारत की नदियाँ बहुत गंदी होती हैं, संगम में स्नान करने वालों के मन में यह सवाल उठता है कि लाखों लोगों के पाप धोने वाला यह पानी कितना शुद्ध है?
जहां प्रतिदिन लाखों लोग नहाते हों, वहां का जल शुद्ध कैसे हो सकता है? और अगर हम इस पानी से नहाएंगे तो बीमार नहीं पड़ेंगे? आइए जानते हैं कि यह पानी शुद्ध है या नहीं?
इसका जवाब हां है. जिलाधिकारी ने इस जल की शुद्धता की घोषणा की है. मेले में आए लोगों की चिंता दूर करते हुए उन्होंने कहा, ''संगम का पानी बिल्कुल शुद्ध है. आस्था के साथ मेले में डुबकी लगाने के बाद लोग इसका पानी अपनी अंजुमनों में ले जा रहे हैं और पी रहे हैं और शरीर के अंदर के पाप भी धो रहे हैं. ऐसे में इस जवाब ने लोगों को राहत दी है.
मेले के अलावा हर दिन होती है जांच जिलाधिकारी विवेक चतुवेर्दी ने मीडिया को बताया कि, ''महाकुंभ के दौरान संगम के पानी की हर दिन जांच की जाती है. विभिन्न घाटों से पानी का सैंपल लेकर लैब में जांच करने के लिए एक टीम का गठन किया गया है. इससे पता चल जाता है कि किस सांचे में ज्यादा गंदगी है और कहां सफाई की जरूरत है. महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा पानी में फेंके गए फूलों या नारियल को निकालने के लिए एक टीम भी बनाई गई है, जिसे मशीन की मदद से हर दो घंटे में निकाला जाता है.
स्वच्छता में कोई समझौता नहीं आपको बता दें कि इस साल यूपी सरकार ने महाकुंभ पर सात हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं. इसमें से 1600 करोड़ रुपये सिर्फ जल शुद्धिकरण पर खर्च किये गये हैं. घाट की सफाई के लिए गंगा सेवादू को नियुक्त किया गया है. इनका काम घाट की साफ-सफाई बनाए रखना है. इसके अलावा शहर में आने वाले लोग खुले में गंदगी न फैलाएं, इसके लिए शौचालय का निर्माण कराया गया है.
लेकिन, 2023 तक नहीं था आचमन लायक संगम
हालांकि हिंदुस्तान टाइम्स कि 11 मई 2023 की रिपोर्ट के अनुसार संगम का जल आचमन योग्य नहीं था. प्रचंड गर्मी में भी संगम में फिकल कोलिफॉर्म की मात्रा 680 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) प्रति 100 मिली लीटर हो गई थी. 9 मई 2023 को आई उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी.
यूं तो नदियों के जल में टोटल कोलिफॉर्म 2400 एमपीएन तक होता है पर फिकल कोलिफॉर्म की मात्रा 100 से कम होनी चाहिए. तभी यह आचमन योग्य होता है जबकि पीने योग्य होने के लिए फिकल कोलिफॉर्म शून्य होना चाहिए.
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अधिकारी व गंगा के विशेषज्ञ डॉ. मोहम्मद सिकंदर ने बताया था कि प्रचंड गर्मी में फिकल कोलिफॉर्म 680 होने का मतलब संगम का जल ग्रहण करने योग्य नहीं है. नालों के जरिए गंदा पानी गंगा-यमुना में मिलने के कारण फिकल कोलिफॉर्म की मात्रा बढ़ने की संभावना ज्यादा होती है. वहीं उत्तर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. अनिल सिंह ने कहा था कि गंगा-यमुना में गिरने वाले नाले या सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों में पानी शोधन ठीक से नहीं होने पर ऐसे मौसम में फिकल कोलिफॉर्म बढ़ता है.
ख़बर की और जानकारी के लिए डाउनलोड करें DNA App, अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से
- Log in to post comments

क्या महाकुंभ का जल शुद्ध है?
महाकुंभ का पानी कितना शुद्ध? क्या संगम में श्रद्धालुओं के स्नान के बाद भी जल आचमन के लिए ठीक है?