Mahabharat Curse: हिंदू धर्म ग्रंथों की मानें तो द्वापर के बाद कलयुग की शुरुआत हुई. द्वापर युग में महाभारत का युद्ध हुआ, जिसके साक्ष्य आज तक धरती पर देखने को मिलते हैं. कई सारे धार्मिंक ग्रंथों में महाभारत काल की घटनाओं से लेकर उसमें दिए श्रापों का वर्णन किया गया है. इतना ही नहीं महाभारत काल में मिले इन श्राप से खुद भगवान तक नहीं बच पाये. यह श्राप भगवान से लेकर आज तक लोग झेल रहे हैं. कलयुग में जीवन यापन कर रहे लोगों पर भी महाभारत के दो श्राप का प्रभाव है. आइए जानते हैं महाभारत के वो 5 श्राप कौन से हैं. वे किसको मिले और कैसे धरती पर जीवन यापन करने वाले लोग उनमें उनमें से 2 श्राप झेल रहे हैं...
युधिष्ठिर का सभी स्त्रियों को श्राप
महाभारत युद्ध में जब अर्जुन ने महारथी कर्ण का वध कर दिया तो माता कुंती कर्ण के शव के पास बैठकर विलाप करने लगीं. कर्ण की मृत्यु पर हमारी माता इतनी दुःखी क्यों हैं? पांडवों को यह बात समझ में नहीं आई. तब धर्मराज युधिष्ठिर ने माता कुंती से पूछा, 'माते! आप अपने शत्रु के मर जाने पर विलाप क्यों कर रही हैं?' तब माता कुंती पांडवों के पास गईं और उन्हें कर्ण के जन्म का रहस्य बताते हुए कहा, "वह आपके बड़े भाई थे." जब पांडवों को यह बात पता चली तो वे बहुत दुखी हुए. धर्मराज ने अपनी मां से कहा, 'माता, आप तो जानती थीं कि कर्ण हमारा बड़ा भाई था, फिर आपने यह बात हमसे क्यों छिपाई?' आप चुप रहे, लेकिन इससे हम अपने भाई के हत्यारे बन गये. इसलिए इस पवित्र भूमि पर खड़े होकर, धरती, आकाश और दिशाओं को साक्षी मानकर मैं समस्त स्त्रियों को श्राप देता हूं कि संसार में कोई भी स्त्री कभी भी कोई महत्वपूर्ण बात गुप्त नहीं रख पाएगी.
ऋषि श्रृंगी द्वारा राजा परीक्षित को दिया गया श्राप
दूसरा श्राप राजा परीक्षित को ऋषि श्रृंगी द्वारा दिया गया था. ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने हस्तिनापुर पर 36 वर्षों तक शासन किया था. जब पांडव स्वर्ग की अपनी अंतिम यात्रा पर निकले तो उन्होंने अपने पूरे राज्य की बागडोर अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को सौंप दी. राजा परीक्षित के शासन में सारी प्रजा सुखपूर्वक रह रही थी. एक दिन जब राजा परीक्षित वन में थे, तो उन्होंने वहां शमीक नाम के एक ऋषि को देखा, जो अपनी तपस्या में लीन थे और मौन व्रत का पालन कर रहे थे. जब कई बार बोलने की कोशिश करने के बावजूद उन्होंने अपना मौन व्रत नहीं तोड़ा, तो राजा परीक्षित ने क्रोधित होकर एक मरा हुआ साँप उनके गले में डाल दिया. जब ऋषि शमीक के पुत्र श्रृंगी ऋषि को इस बारे में पता चला तो वे क्रोधित हो गए और राजा परीक्षित को श्राप देते हुए कहा, 'सात दिनों के बाद वह 'तक्षक' सांप के काटने से मर जाएंगे.' राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद कलियुग का आरम्भ हुआ. क्योंकि जब तक परीक्षित जीवित थे, कलियुग में ऐसा कोई साहस नहीं था जो उन्हें किसी पर हावी होने दे. इस श्राप के कारण ही हम कलियुग के परिणाम भुगत रहे हैं.
भगवान कृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप
तीसरा श्राप भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा को दिया था. महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद क्रोधित अश्वत्थामा ने सोये हुए पांडव पुत्रों को मार डाला. यह जानकर पांडवों ने उसका पीछा किया. उस समय श्री कृष्ण उनके साथ थे. अश्वत्थामा महर्षि वेदव्यास के आश्रम के पीछे छिपा हुआ था. अर्जुन को देखते ही उन्होंने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया और तुरन्त अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया. महर्षि व्यास ने दोनों ब्रह्मास्त्रों को एक-दूसरे पर प्रहार करने से रोक दिया तथा दोनों से अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा. अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा को यह नहीं पता था कि अस्त्र वापस कैसे लिया जाता है. उन्होंने अस्त्र की दिशा बदल दी और अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर प्रहार कर दिया. अश्वत्थामा का यह निंदनीय कृत्य देखकर भगवान कृष्ण बहुत क्रोधित हुए. 'उन्होंने उसके सिर से मोती उतार लिया और उसे भयंकर श्राप दिया. उसके सिर पर घाव बढ़ता रहेगा और तुम पृथ्वी पर भटकते रहोगे. आप किसी से बात नहीं कर सकते. तुम्हारे घाव की दुर्गंध के कारण कोई भी व्यक्ति तुम्हारे पास नहीं आएगा, तुम सुदूर जंगल में रहोगे.' कहा जाता है कि अश्वत्थामा आज भी तेल की भीख मांगते हुए धरती पर भटक रहे हैं.
माण्डव्य ऋषि द्वारा यमराज को दिया गया श्राप
चौथा श्राप वह है जो ऋषि माण्डव्य ने यमराज को दिया था. एक बार एक राजा ने न्याय में गलती की और उसे सूली पर चढ़ाने का आदेश दे दिया, लेकिन काफी देर तक सूली पर लटके रहने के बाद भी उसकी मृत्यु नहीं हुई. तब राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने ऋषि को सूली से नीचे उतारा और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी. तब ऋषि माण्डव्य यमराज के पास गए और यम से पूछा, 'मुझे किस बात की सजा मिली है?' इस पर यमराज ने कहा, 'तुम्हें यह दंड इसलिए मिला क्योंकि तुमने बारह वर्ष की आयु में एक छोटे से कीड़े की पूंछ में सुई चुभो दी थी.' इस पर ऋषि माण्डव्य ने कहा, 'बारह वर्ष की आयु में कोई भी धर्म और अधर्म के बारे में नहीं जानता, किन्तु चूंकि तुमने मुझे बहुत छोटी सी बात का दण्ड दिया है, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें एक शूद्र दासी के गर्भ में जन्म लेना पड़ेगा और इसी कारण महाभारत में यमराज को 'विदुर' के रूप में जन्म लेना पड़ा था'
उर्वशी का अर्जुन को श्राप
जब अर्जुन दिव्य अस्त्र प्राप्त करने के लिए स्वर्ग गए, तो उर्वशी नाम की एक अप्सरा अर्जुन की ओर आकर्षित हुई. जब उसने यह कहानी अर्जुन को सुनाई तो अर्जुन ने विनम्रतापूर्वक उससे कहा, 'आप मेरे लिए माँ की तरह हैं.' यह सुनकर उर्वशी बहुत क्रोधित हुई और अर्जुन से बोली, 'अर्जुन, हे नपुंसक पुरुष, मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम वास्तव में नपुंसक हो जाओगे और स्त्रियों के बीच नर्तक बनोगे.' यह श्राप सुनकर अर्जुन भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान इंद्र को सारी बात बता दी. भगवान इंद्र के विनती करने पर उर्वशी ने श्राप की अवधि को एक वर्ष कर दिया. तब राजा इन्द्र ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, 'यह श्राप तुम्हारे एक वर्ष के वनवास के दौरान तुम्हारे लिए वरदान सिद्ध होगा.' वनवास के दौरान नर्तकी के वेश में रहने के कारण तुम कौरवों से सुरक्षित रहोगे.' ये महाभारत के कुछ श्राप हैं जिनके प्रभाव आज भी हैं.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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महाभारत के इन 5 श्राप से नहीं बच पाए थे भगवान, 2 को आज तक झेल रहे लोग