Varuthini Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में तिथियों का बड़ा महत्व है. इनमें एकादशी तिथि को सबसे ज्यादा खास माना जाता है. वहीं बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार एकादशी की शुरुआती 23 अप्रैल को शाम में 4 बजकर 44 मिनट पर होगा और एकादशी तिथि का समापन 24 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 31 मिनट पर होगा. उदयातिथि को देखते हुए एकादशी का व्रत 24 अप्रैल को रखा जाएगा. इस एकादशी पर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने का विधान है. मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने के साथ ही व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिलती है. सुख और सौभाग्य की प्राप्ति मिलती है. अगर आप भी वरुथिनी एकादशी का व्रत रख रहे हैं, तो पूजा करने के साथ मंत्र, चालीसा का पाठ और कथा जरूर करें.
वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के साथ ही उनका व्रत करने और कथा पढ़ने से पुण्यों की प्राप्ति होती है. बिना एकादशी के कथा के व्रत करना अपूर्ण माना जाता है. अगर आप भी एकादशी का व्रत करते हैं तो एकादशी की कथा जरूर पढ़ें. आइए जानते हैं वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा...
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को इस कथा को सुनाया था. प्राचीन काल की बात है नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे. वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे. एक दिन की बात है कि वह जंगल में ही ध्यान मग्न होकर तपस्या कर रहे थे, तभी अचानक से वहां पर एक जंगली भालू आ गया और तपस्या में लीन राजा का पैर चबाने लगा, लेकिन राजा बिना किसी विघ्न के अपनी तपस्या में लीन रहे. कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते जंगली भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया.
राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा. उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला.राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था. इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए. उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो. तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो. उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे. इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था.
भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया. इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया. इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे, जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है.
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है, जो लोक कथाओं और मान्यताओं पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टी नहीं करता है)
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वरुथिनी एकादशी पर व्रत के साथ करें इस कथा का पाठ, प्रसन्न हो जाएंगे विष्णु भगवान