What Is Santhara Ritual: संथारा जिसे 'सल्लेखना' भी कहा जाता है, जैन धर्म की सबसे पुरानी प्रथा मानी जाती है. जैन समाज में इस परंपरा के तहत देह त्यागने को बहुत पवित्र कार्य माना जाता है. हालांकि, जैन धर्म में ये अनिवार्य नियम नहीं है. इस परंपरा का कुछ लोग विरोध करते हैं और इसे आत्महत्या कहते हैं. बता दें कि संथारा को बैन करने से जुड़ी हुई एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित भी है. 

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो हर साल जैन धर्म से जुड़े 200 से 500 लोग मौत के लिए ये रास्ता चुनते (Santhara Ritual) हैं, ऐसे में आइए जानते हैं आखिर क्या है संथारा (Santhara or Sallekhana) की परंपरा और कब लोग इसे चुनते हैं... 

जब Cervical Cancer के बाद महिला ने चुना था ये रास्ता

BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वाइकल कैंसर का पता चलने के तीन हफ़्ते बाद 88 साल की सायर देवी ने इलाज नहीं करवाने का फैसला किया था और मरणव्रत' को चुना था. सायर देवी के पोते के मुताबिक 25 जून को उनकी बायोप्सी रिपोर्ट आई थी, जिसमें कैंसर फैलने का पता चला था और 13 जुलाई 2024 को उन्होंने प्रार्थना की और सूप पिया और अगले दिन हमें संथारा अपनाने की इच्छा के बारे में बताया था. 

क्या है संथारा की परंपरा? 

बता दें कि कुछ जैन अनुयायी मौत के इस तरीके को तब चुनते हैं, जब उन्हें मालूम चलता है कि उनकी मृत्यु नज़दीक है या फिर उन्हें कोई लाइलाज बीमारी हो गई है. इसके लिए लोग खुद को एक कमरे में बंद कर लेते हैं और अन्न-जल का त्याग कर देते हैं. बता दें कि ऐसे ही कोई संथारा ग्रहण नहीं कर सकता है. इसके लिए जैन धर्म के धर्मगुरु की आज्ञा  लेनी होती है.  बूढ़े हो चुके लोग, या लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त होने की स्थिति में संथारा ग्रहण किया जाता है. 

इसके अलावा संथारा में श्रावक अन्न-जल त्याग कर देह त्याग करते हैं. इस दौरान वे भौतिक मोह-माया का त्याग कर भगवान को याद करते हैं. संथारा लेने का फैसला पूरी तरह से स्वेच्छा पर निर्भर करता है और किसी पर इसके लिए कोई दबाव नहीं बनाया जा सकता है. दूसरी ओर बच्चों और युवाओं को संथारा करने की अनुमति नहीं होती है. 

धर्मग्रंथों में मिलता है उल्लेख

बता दें कि दूसरी शताब्दी से लेकर पांचवी शताब्दी तक के कई जैन धर्म ग्रंथों में इस प्रथा का उल्लेख है. मान्यता है कि जो व्यक्ति इसका संकल्प लेता है उसे साफ़ मन से और बुरी भावना छोड़कर, सबकी ग़लतियां माफ़ करनी चाहिए और अपनी ग़लतियां माननी चाहिए. हालांकि  धर्मगुरु ही किसी व्यक्ति को संथारा की इजाज़त दे सकते हैं. 

गुरु के इजाज़त के बाद वो व्यक्ति अन्न त्याग करता है और इस दौरान व्यक्ति के आसपास धर्मग्रंथ का पाठ किया जाता है और प्रवचन होता है. इतना ही नहीं संथारा लेने वाले व्यक्ति को मिलने के लिए कई लोग आते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं.

  (Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है, जो लोक कथाओं और मान्यताओं पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टी नहीं करता है)

अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगलफेसबुकx,   इंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से

Url Title
what is santhara or sallekhana ritual jainism practice of body sacrifice for death santhara parampara kya hoti hai
Short Title
क्या है संथारा? कब जैन धर्म के अनुयायी चुनते हैं 'मृत्यु तक उपावास' की ये परंपरा
Article Type
Language
Hindi
Section Hindi
Authors
Created by
Updated by
Published by
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
सांकेतिक तस्वीर
Caption

सांकेतिक तस्वीर

Date updated
Date published
Home Title

क्या है संथारा? कब जैन धर्म के अनुयायी चुनते हैं 'मृत्यु तक उपावास' की ये परंपरा

Word Count
527
Author Type
Author