88 वर्ष की उम्र में ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का निधन हो गया. उनकी मृत्यु से पूरी दुनिया में शोक की लहर है. पोप की मौत से जुड़ी कई ऐतिहासिक और रोचक परंपराएं एक बार फिर चर्चा में हैं. सदियों पहले कैथोलिक चर्च की परंपरा थी कि पोप की मृत्यु के बाद उनका दिल निकालकर सुरक्षित रखा जाता था. वहीं, पोप की अंगूठी, जिसे ‘रिंग ऑफ द फिशरमैन’ कहा जाता है जिसे तोड़ा जाता था, जो उनके आधिकारिक शासन के अंत का प्रतीक मानी जाती थी. आइए जानते हैं पोप के निधन से जुड़ी कुछ ऐसी ही रोचक कहानी के बारे में
सामान्य पादरी की तरह दफनाया जाए
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार कैथोलिक चर्च की परंपराओं से हटकर किया जाएगा. वेटिकन की परंपरा रही है कि पोप के निधन के बाद उनका शरीर सेंट पीटर बेसिलिका में रखा जाता है और वहीं दफन भी किया जाता है. लेकिन पोप फ्रांसिस ने इससे अलग मारिया मैगीगोर बेसिलिका को अपनी अंतिम विश्रामस्थली चुना था. वह चाहते थे कि उन्हें एक सामान्य पादरी की तरह दफनाया जाए, न कि एक पोप की तरह.
मृत्यु के बाद दिल निकालने की परंपरा
पोप के अंतिम संस्कार से जुड़ी कई सदियों पुरानी परंपराएं भी चर्चा में हैं. 16वीं से 19वीं शताब्दी तक पोप की मृत्यु के बाद उनका दिल निकालकर संरक्षित रखा जाता था. यह परंपरा अब बंद हो चुकी है, लेकिन इसे लेकर आज भी लोगों में जिज्ञासा बनी रहती है. रोम के चर्चों में आज भी कई पुराने पोप के दिल संगमरमर के कलशों में रखे हुए हैं.
अंगूठी तोड़ने की भी परंपरा
पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार की रस्में सेंट पीटर स्क्वायर में होंगी, जहां कार्डिनल कॉलेज के डीन लैटिन भाषा में प्रार्थना करेंगे. हालांकि, उन्होंने अपने शरीर को पारंपरिक कैटाफाल्क (ऊंचे मंच) पर न रखने और सामान्य ताबूत में दफनाने की इच्छा जताई थी. पोप के निधन के बाद उनकी अंगूठी को तोड़ा गया, जो उनके शासन के अंत की प्रतीक होती है. बता दें, यह पहला मौका है जब किसी पोप को वेटिकन से बाहर दफनाया जाएगा. इससे यह संकेत मिलता है कि अब चर्च में भी परंपराओं को लचीला बनाया जा रहा है.
उनके जीवन के मूल्यों और विचारों का सम्मान होगा
पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार को लेकर दुनियाभर के कैथोलिक अनुयायी भावुक हैं. वे उन्हें एक ऐसे धर्मगुरु के रूप में याद कर रहे हैं जिन्होंने चर्च को आधुनिक सोच और सरलता की ओर ले जाने की कोशिश की. उन्होंने हमेशा गरीबों, शरणार्थियों और हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज उठाई. उनकी विनम्रता और सादगी ने उन्हें आम लोगों के दिलों के करीब पहुंचाया. अब जब उनके अंतिम संस्कार में भी वही सादगी झलकेगी, तो यह उनके जीवन के मूल्यों और विचारों का सम्मान होगा.
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